अर्वाचीन कवि : श्रीअम्बिकादत्त व्यास
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जन्म
अम्बिकादत्त व्यास का जन्म जयपुर में हुआ था। आधुनिक संस्कृत रचनाकारों में सर्वाधिक ख्यातिप्राप्त एवं अलौकिक प्रतिभासंपन्न साहित्याचार्य श्री अंबिकादत्त व्यास जी हैं। आपने 'बिहारी विहार' में सक्षिप्त निज—वृतान्त स्वयं लिखा है। जिसके अनुसार राजस्थान में 'जयपुर' से करीब 22 मील पूर्व की ओर 'रावत जी का धूला' नामक अत्यंत प्रसिद्ध गांव है। राजा मानसिंह के दूसरे पुत्र दुर्जन सिंह ने धूला को ही अपने राज्य की राजधानी बनाया। इसी ठाकुर वंश में आगे चलकर राजा दलोल सिंह हुए। इनके राज्य सभा पंडित श्री गोविंद रामजी थे। आप के प्रपौत्र पंडित राजारामजी के दो पुत्र थे — दुर्गादत्त देवीत्त। पंडित अम्बिकादत्त व्यास के पिता का नाम दुर्गादत्त था। वे कभी जयपुर में रहते थे, कभी बनारस। व्यासजी का जन्म जयपुर में ही चैत्र शुक्ल अष्टमी संवत् 1915 में हुआ तथा बयालीस वर्ष की अवस्था में ही 'महाकवि' का सम्मान प्राप्त कर व्यासजी सोमवार, मार्ग शीर्ष त्रयोदशी, संवत् 1957 को अपने पीछे एक नवर्षीय पुत्र, एक कन्या और विधवा पत्नी को असहाय छोड़कर पञ्चतत्व को प्राप्त हो गए किंतु इनका यश: शरीर अजर और अमर है।
जीवन
'शिवराजविजय' के रचयिता व्यास को घटिकाशतक सम्मान से विभूषित किया गया था। वे कविता कला में इतने प्रवीण थे कि एक घड़ी (24 मिनट) में सौ श्लोकों की रचना कर सकते थे। सौ प्रश्नों को एक साथ ही सुनकर उन सभी का उत्तर सभी क्रम में देने की अद्भुत क्षमता थी। इसीलिए इन्हें 'शतावधान' तथा 'घटिकाशतक' की उपाधि मिली थी। लगभग 12 वर्ष की अवस्था में व्यासजी ने धर्मसभा की परीक्षा में पुरस्कार प्राप्त किया और श्री तैलंग अष्टावधान के 'सुकविरेष', कहने पर भारतेदुजी ने 'काशीकविता वर्धिनी सभा' की ओर से इन्हें 'सुकवि' की उपाधि प्रदान की। अंत में काशी की महासभा में इन्हें 'भारतरत्न' की उपाधि मिली। संवत् 1937 में इन्होंने साहित्याचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की और संवत् 1938 में काशी ब्रह्रामृतवर्षिणी सभा की ओर से इन्हें 'घटिकाशतक' उपाधि प्रदान की गई।
'शतावधान' तथा 'घटिकाशतक' की उपाधि शिवराजविजय के
लेखक व्यास को मिली थी।
शिवराजविजय में व्यासजी ने पाच्चाली रीति का आश्रय लिया गया है। डॉ. श्यामसुंदर दास के अनुसार, किसी कवि या लेखक की शब्द—योजना, वाक्यांशों का प्रयोग, उसकी बनावट और ध्वनि आदि का नाम ही शैली है। दंडी ने काव्यादर्श में 'अस्त्यनेको गिराममार्ग: सूक्ष्मभेदपरस्परम्' कहा है। इन भावनाओं के अनुसार, स्थूलत: शैली के दो भेद किये जाते हैं —
1. समास शैली,
2. व्यास शैली
इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक व्यक्तियों के आधार पर आजकल विद्वानों ने मार्ग (शैली) को चार प्रकार का माना जाता है। किंतु अन्नतरकाल में इन्हें शैली न कहकर रीतियां कहा जाने लगा है। ये रीतियां चार हैं —
1. वैदर्भी,
2. गौड़ी,
3. पाच्चाली और
4. लाटी।
1. कोमल वर्णों और असमासता तथा अल्पसमास, माधुर्यपूर्ण रचना वैदर्भी रीति है।
2. महाप्राण—घोषवर्णा, ओजगुण समान तथ समास बहुला रचना गौडी है।
3. वैदर्भी और गौणी का सम्मिश्रण पाञ्चाली रीति है।
4. वैदर्भी और पाच्चाली का सम्मिश्रण लाटी रीति है।
शिवराजविजय
'शिवराजविजय' एक ऐतिहासिक उपन्यास है। महाकवि अम्बिकादत्य व्यास द्वारा विरचित 'शिवराजविजय' को संस्कृत साहित्य का प्रथम ऐतिहासिक उपन्यास होने का सौभाग्य प्राप्त है। शिवराजविजय की कथावस्तु ऐतिहासिक है इसका कथानक इतिहासक प्रसिद्ध महाराष्ट्र शिरोमणि शिवाजी के दस वर्षों की जीवनी पर आधारित है। लेखक ने इसे गद्यकाव्य ही कहा। क्योंकि यह गद्यकाव्य के समस्त गुणों से ओत-प्रोत है। इसकी भाषा तथा शैली प्रवाह रोचकता से परिपूर्ण है अत: इसे गद्य—काव्य के साथ—साथ ऐतिहासिक उपन्यास कहना समीचीन है। पाठक का आदि से अंत तक कहीं चित्त उगता नहीं। अत: यह बीसवीं शताब्दी का एक सफल संस्कृत उपन्यास है।
शिवराजविजय यह एक ऐतिहासिक उपन्यास है। चम्पू काव्य जिस रचना में गद्य और पद्य का समान भाव से तथा सहयोग पूर्वक प्रयोग किया जाता है उसे चम्पू कहते हैं। चम्पू परंपरा का प्रारंभ हमें अर्थर्ववेद में प्राप्त होता है। चम्पू काव्य निम्नलिखित हैं — त्रिविक्रम भट्ट का नलचम्पू और मदालसा चम्पू, सोमदेव सूरि का यशस्तिलक, हरिश्चंद्र कृत—जीवन्धरम्पू, भोज का रामायण चम्पू, अनन्त भट्ट का भारत चम्पू और भागवत चम्पू।
साहित्याचार्य पंडित अम्बिकादत्त व्यास ने 1870 ई. में 'शिवराजविजय' नामक गद्यकाव्य की रचना की, जो काशी से 1901 ई. में प्रकाशित हुआ। व्यासजी का स्थितिकाल 1858-1900 ई. था। इनके पूर्वज जयपुर के निवासी थे और इनके पितामह काशी में आकर बस गए थे। 'बिहारी-विहार' में संक्षिप्त जीवन स्वयं लिखा है। मृत्यु के समय वे गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेज पटना में प्रोफेसर थे।
शिवराजविजय 12 नि:श्वासों में विभक्त है। शिवराजविजय की कथावस्तु तीन विरामों में संविभक्त है। प्रत्येक विराम में चार नि:श्वास हैं। अर्थात् शिवराजविजय कुल 12 नि:श्वासों में विभक्त है।
प्राप्त उपाधि
भारत भाष्कर
साहित्याचार्य
व्यास
घटिकाशतक
शतावधान
सुकवि
महाकवि
प्रमुख काव्य-कृतियां
गणेशशतकम्
शिवविवाह (खण्डकाव्य),
सहस्रनामरामायणम् -- इसमें एक हजार श्लोक हैं। यह 1898ई. में पटना में रचा गया।
पुष्पवर्षा (काव्य),
उपदेशलता (काव्य)
साहित्यनलिनी,
कथाकुसुमम् (कथासंग्रह)
शिवराजविजय (उपन्यास) -- 1870 में लिखा गया, किन्तु इसका प्रथम संस्करण 1901 ई. में प्रकाशित हुआ।
समस्यापूर्तयः, काव्यकादम्बिनी ( ग्वालियर में प्रकाशित)
सामवतम् -- यह नाटक, पटना में लिखा गया। इसकी प्रेरणा महाराज लक्ष्मीश्वरसिंह से प्राप्त हुई. थी। यह स्कन्दपुराण की कथा पर आधारित है तथा इसमें छह अंक हैं।
ललिता नाटिका,
मर्तिपूजा,
गुप्ताशुद्धिदर्शनम्,
क्षेत्र-कौशलम्,
प्रस्तारदीपिका
सांख्यसागरसुधा।
प्रकाशित कृतियाँ
बिहारी बिहार (१८९८ ई.)
पावस पचास,
ललिता (नाटिका)१८८४ ई.
गोसंकट (१८८७ ई.)
आश्चर्य वृतान्त १८९३ ई.
गद्य काव्य मीमांसा १८९७ ई.,
हो हो होरी
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