गुरुपूर्णिमा महोत्सव (GURUPURNIMA MAHIMA)
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हिन्दू धर्म में गुरु को ईश्वर से भी श्रेष्ठ
माना जाता है|
क्योंकि गुरु ही हैं जो इस संसार रूपी भव सागर को पार करने में
सहायता करते हैं| गुरु के ज्ञान और दिखाए गए मार्ग पर चलकर
व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है| शास्त्रों में कहा गया है
कि यदि ईश्वर आपको श्राप दें तो इससे गुरु आपकी रक्षा कर सकते हैं परंतु गुरु के
दिए श्राप से स्वयं ईश्वर भी आपको नहीं बचा सकते हैं| इसलिए
कबीर जी कहते भी हैं -
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥
हर
वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है| गुरु
पूर्णिमा को गुरु की पूजा की जाती है| भारत वर्ष में यह पर्व
बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है| प्राचीन काल में
शिष्य जब गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो इसी दिन पूर्ण
श्रद्धा से अपने गुरु की पूजा का आयोजन किया करते थे| इस दिन
केवल गुरु की ही नहीं, अपितु घर में अपने से जो भी बड़ा है
अर्थात माता-पिता, भाई-बहन आदि को गुरुतुल्य समझ कर उनसे
आशीर्वाद लिया जाता है|
गुरु पूर्णिमा का महत्व
इस
दिन को हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का
जन्मदिवस भी माना जाता है| वे संस्कृत के महान विद्वान थे महाभारत
जैसा महाकाव्य उन्ही की देन है। इसी के अठारहवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण गीता
का उपदेश देते हैं। सभी 18 पुराणों का रचयिता भी महर्षि
वेदव्यास को माना जाता है। वेदों को विभाजित करने का श्रेय भी इन्हीं को दिया जाता
है। इसी कारण इनका नाम वेदव्यास पड़ा था। वेदव्यास जी को आदिगुरु भी कहा जाता है
इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है|
गुरु पूर्णिमा के वर्षा ऋतु ही क्यों श्रेष्ठ?
भारत
वर्ष में सभी ऋतुओं का अपना ही महत्व है| गुरु पूर्णिमा खास तौर पर वर्षा ऋतु में ही क्यों मनाया जाता है इसका भी
एक कारण है| क्योकि इन चार माह में न अधिक गर्मी और न अधिक
सर्दी होती है| यह समय अध्ययन और अध्यापन के लिए अनुकूल व
सर्वश्रेष्ठ है| इसलिए गुरुचरण में उपस्थित शिष्य ज्ञान,
शांति, भक्ति और योग शक्ति को प्राप्त करने
हेतु इस समय का चयन करते हैं|
गुरु पूर्णिमा का उत्सव, हमारे गुरुओं को याद करने और उनसे आशीर्वाद लेने का एक शुभ अवसर होता है। “गुरु” का अर्थ विडंबनापूर्ण है अर्थात ‘गु’ का अर्थ है अंधेरा और ‘रू’ का अर्थ है अंधेरे को खत्म करने का प्रतीक। इसलिए, दोनों शब्द का एक सच्ची भावना बनाकर गुरु के रूप का वर्णन करते हैं जो हमारे मस्तिष्क और आत्मा को उजागर करते हैं तथा हमारे जीवन के सभी अधंकार को दूर कर देते है। गुरु पूर्णिमा का त्यौहार मुख्य रूप से पंचांग या हिंदू कैलेंडर के अनुसार शक् संवत के पूर्णिमा दिवस पर हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाता है। इस दिन, शिष्य अपने गुरु और शिक्षकों को याद करते हैं, उनकी पूजा करते हैं साथ ही साथ उनके द्वारा दिये गये ज्ञान और शिक्षाओं के लिए आभार भी व्यक्त करते हैं।
प्रबुद्ध मन और
आत्मा के बिना, प्रत्येक मनुष्य केवल मांस और हड्डियों का ढांचा है। गुरू ही होता है जो
एक मनुष्य को धैर्यवान व्यक्ति बनाने के लिए अच्छे गुणों और शिक्षाओं को उसके अंदर
विकसित करता है। एक व्यक्ति का पहला गुरु या शिक्षक उसकी माँ होती है, जो उसे उसके जीवन के वास्तविक मूल्यों को समझती है और उसे सही और गलत के
बीच अंतर करने के तरीके बताती है। वह उसे बचपन में नैतिक मूल्यों की शिक्षा देती
है जो बाद में शिक्षकों के रूप में भरोसेमंद गुरुओं द्वारा दी जाती है। इसलिए
हमारे गुरु का सम्मान करने के लिए इस दिन का उत्सव मनाना जरूरी हो जाता है। केवल
हमारे गुरुओं, माता-पिता, शिक्षकों और
हमारे शुभचिंतकों की उचित शिक्षाएँ और आशीर्वाद ही हमें एक सुसंस्कृत और उत्तम
व्यक्ति बना सकती हैं।
गुरु
पूर्णिमा के उत्सव के पीछे का इतिहास
बौद्ध
धर्म, हिंदू धर्म और जैन धर्म में गुरु पूर्णिमा के
उत्सव के पीछे एक समृद्ध इतिहास है।
बौद्ध धर्म: यह दिन भगवान बुद्ध,
जिन्होंने इस धर्म की नींव रखी थी, के सम्मान में मनाया जाता है। बौद्ध
लोगों का मानना है कि इस पूर्णिमा के दिन, भगवान बुद्ध ने
बोधगया में बोधी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त करने के बाद उत्तर प्रदेश के सारनाथ
में अपना पहला उपदेश दिया था। तब से, उनकी पूजा निष्ठा से
करने के लिए यह उत्सव मनाया जाता है।
हिंदू धर्म: हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार,
यह माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव योग के ज्ञान को सात
अनुयायियों या “सप्तर्षियों” में
प्रसार करके गुरू बन गये थे। तब से, हिंदू भक्त इस दिन को
गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं।
हिंदू धर्म में, गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी
कहा जाता है क्योंकि इस दिन महान ऋषि वेद व्यास का जन्म हुआ था। उन्हें हिंदू
परंपराओं में सबसे प्रभावशाली गुरु और उन्हें गुरु-शिष्य प्रथा का एक प्रतीक माना
जाता है। इस बात पर भी एक धारणा है कि इस दिन उन्होंने अपने प्रसिद्ध काम, ब्रह्मा सूत्र के लेखन को समाप्त किया था। उनके शिष्य इस दिन सूत्रों के
प्रति उनके समर्पण और सम्मान को चिन्हित करते हुए इन सूत्रों को पढ़ते हैं।
जैन धर्म: जैन धर्म के प्रसिद्ध 24 वें तीर्थंकर महावीर का सम्मान में गुरु पूर्णिमा को त्रीनोक गुहा पूर्णिमा के रूप में मनाया
जाता है। जैन धर्म के अनुयायियों का मानना है कि इस दिन महावीर को उनके पहले
अनुयायी गौतम स्वामी मिले, जिसके बाद वह एक त्रीनोक गुहा बन
गए।
गुरु
पूर्णिमा का उत्सव
पूरे देश में गुरु
पूर्णिमा खुशी और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह उत्सव तीन धर्म अर्थात
हिंदू, बौद्ध
और जैन धर्म तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य धर्मों के लोग
भी इस उत्सव के समारोह में शामिल हो सकते हैं। यह दिन अपने गुरुओं के स्मरण के साथ
शिष्यों द्वारा किए गए धार्मिक गतिविधियों से शुरू होता है। लोग अपने घरों या
मंदिर में अपने गुरु के नाम पर गुरु पूजा करते हैं।
शैक्षिक संस्थानों
जैसे स्कूलों और कॉलेजों में गुरु पूर्णिमा शिक्षकों के प्रति आभारी होने के
साथ-साथ उनकी शिक्षाओं और समर्थन के लिए धन्यवाद देकर मनाया जाता है। इस दिन कई
शैक्षणिक संस्थानों में कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। भूतपूर्व छात्र भी अपने
शिक्षकों से मिलने और उन्हें उपहार देने के लिए दूर-दूर से यात्रा करके आते हैं।
हिंदू भिक्षु या
संन्यासी भी, इस दिन को चातुर्मास के वृत्तांत के रूप में, अपने
गुरुओं के प्रति सम्मान में पूजा करके मनाते हैं। कुछ लोग इसे अगल तरीके से
मनाते है और खुद को उत्सव मनाने तक ही सीमित रखते हैं, जबकि
कुछ अन्य लोगों को उपदेश देकर मनाते हैं।
पूर्णिमा का दिन या
पूर्णिमा जो हिंदू महीने आषाढ़ में आती है, आषाढ़ पूर्णिमा के रूप में जानी
जाती है। इस शुभ अवसर पर, लोग भगवान विष्णु की पूजा करते हैं
और गोपदम व्रत का पालन करते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में भी
मनाया जाता है, पूर्णिमा के दिन जब लोग अपने गुरु का
आशीर्वाद लेते हैं।
चंद्र-सौर
कैलेंडर या पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह का नाम पूर्णिमा
तिथि पर उस नक्षत्र के आधार पर रखा जाता है जिसमें चंद्रमा स्थित होता है। ऐसा
माना जाता है कि आषाढ़ मास में पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पूर्वाषाढ़ या उत्तराषाढ़ नक्षत्र
में स्थित होता है। यदि आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा उत्तराषाढ़ नक्षत्र
में हो तो वह पूर्णिमा समृद्धि और प्रचुरता प्राप्त करने के लिए बहुत ही शुभ और
सौभाग्यशाली मानी जाती है।
इसके अलावा, आषाढ़
पूर्णिमा पर, लोग गोपदम व्रत का पालन करते हैं और भगवान
विष्णु की विशेष पूजा करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि गोपद्म व्रत बहुत फलदायी होता
है और व्रत रखने वाले को सभी प्रकार के आशीर्वाद और सुख प्रदान करता है। चूंकि इस
दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, इसलिए हिंदू
और बौद्ध संस्कृति में इस दिन का बहुत महत्व है। इस दिन लोग अपने गुरु का आशीर्वाद
लेते हैं और उनकी शिक्षाओं की तलाश करते हैं। बौद्ध संस्कृति में ऐसा माना जाता है
कि लगभग 2500 साल पहले इसी दिन भगवान बुद्ध ने सारनाथ में
अपना पहला उपदेश दिया था।
·
आषाढ़ पूर्णिमा पर गोपदम व्रत करने के लिए अनुष्ठान
·
सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर साफ कपड़े पहन लें।
·
पूरे दिन प्रार्थना करें या भगवान विष्णु के नाम का पाठ करें। और लाभों के
लिए कोई भी सत्यनारायण कथा पढ़ या सुन सकते हैं।
·
ध्यान के दौरान, गरुड़ वाहन पर अपनी पत्नी देवी लक्ष्मी के साथ बैठे चतुर्भुज विष्णु की
छवि के बारे में सोचें।
·
भगवान विष्णु को मिट्टी के दीपक या दीये, सार, फूल और
धूप का भोग लगाना चाहिए।
·
भगवान विष्णु से प्रार्थना करने के बाद, भक्तों को ब्राह्मणों या जरूरतमंद
लोगों को खाना खिलाना चाहिए। धर्मार्थ कार्य भी अपनी सुविधानुसार करना चाहिए।
·
भक्तों को पीले वस्त्र धारण करना चाहिए और दान के रूप में अनाज और मिठाई
बांटनी चाहिए।
·
ऐसा कहा जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा की सुबह पीपल के पेड़ के नीचे देवी
लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में धन और समृद्धि प्राप्त होती है।
·
गोपदं व्रत का पालन करने वाले को गायों की पूजा करनी चाहिए और उन्हें
खिलाना चाहिए। उन्हें गाय के सिर पर तिलक लगाना चाहिए और उसका आशीर्वाद लेना
चाहिए।
सिख धर्म में गुरु पूर्णिमा का महत्व अधिक माना गया है
क्योंकि सिख धर्म में दस गुरुओं का विशेष महत्व रहा है |गुरु पूर्णिमा का पर्व अपने गुरु
के विशेष स्मरण, अर्चन, वंदन
के लिए समर्पित है |शास्त्रों में गुरु के अर्थ के बारे में
बताया गया है कि ‘गु’ का अर्थ होता
है अंधकार अथवा अज्ञान और ‘रु’ का अर्थ
होता है प्रकाश ( ज्ञान ) अर्थात गुरु व्यक्ति को अज्ञान रूपी अंधकार से
ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाता है | गुरु की भूमिका एक
कुम्भकार की होती है और शिष्य कच्ची मिट्टी का एक ढेला होता है | जिसे गुरु जीवन लक्ष्य प्राप्ति की ओर प्रवृत्ति करता है | व्यापक अर्थों में अपने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में मार्गदर्शन करने
वाले को गुरु की प्रतिष्ठा दी गई है | चाहे वह अक्षर ज्ञान
कराने वाला हो, किसी विशेष कला, संगीत,
चित्रकला, नियुद्ध, मल्ल
युद्ध आदि सिखाने वाला, व्यवसाय या जीविकोपार्जन में
मार्गदर्शन करने वाला अर्थात जीवन में जिससे कुछ भी सीखते है उसको गुरु मानते है |
इसलिए गुरु को साक्षात ईश्वर माना गया है |
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस का गान करने
से पहले सदगुरु चरणों की महत्ता का चरित बखान करते हुए लिखा है :
बंदउँ गुरु पद कंज, कृपा सिंधु नर रूप हरि |
महामोह तम पुंज, जासु वचन रविकर निकर ||
कबीरदास
जी ने भी अपने दोहें में गुरु की महत्ता बताते हुए लिखा है :
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लांगू पांय |
बलिहारी गुरु अपने गोविंद दियो बताय ||
गुरु पूर्णिमा का महत्व सबके जीवन में होता है परन्तु
इसकी पूर्णता का लाभ सच्चे शिष्य को ही मिलता है | राम, कृष्ण,
शिवाजी, दयानन्द, विवेकानन्द
जैसे महापुरुषों के विकास में गुरु का मत्वपूर्ण योगदान रहा है |
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह पर्व गुरुओं के सम्मान का पर्व है और इस पर्व को पूरे भारत वर्ष में बहुत
हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है | जीवन में गुरु की महत्ता
को समर्पित इस दिन हम सब को गुरु द्वारा बताएं मार्ग पर चलना ही गुरु को सच्चा
सम्मान दें सकते है |
अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
नाली कनी काशपदाहृताभ्यां नानाविमोहादिनिवारिकाभ्यां।
नमज्जनाभीष्टततिब्रदाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥
गुशब्दस्त्वन्धकारः स्यात् रुशब्दस्तन्निरोधकः।
अन्धकारनिरोधित्वात्
गुरुरित्यभिधीयते॥
नमो
गुरुभ्यो गुरुपादुकाभ्यो
नमः परेभ्यः परपादुकाभ्यः।
आचार्यसिद्धेश्वरपादुकाभ्यो
नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्यः॥
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