महाभारत एक परिचय । भाग - ०२ पर्वविमर्श
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महाभारत महाकाव्य मे १८ पर्व समाहित है | महाभारत का मुख्य नायक श्रीकृष्ण और रस शान्त है | महाभारत की समीक्षित आवृत्ति भान्डारकर प्राच्य विद्या संस्थान पुणे द्वारा प्रकाशित हुइ है | महाभारत की तीन टिका प्रसिद्ध है |
१.नीलकण्ठद्वारा विरचित `श्रीमहाभारत दीपिका
२. श्रीनारायण सर्वज्ञ विरचिता भारतार्थ प्रकाश
३. श्रीअर्जुनमिश्रद्वारा विरचित भारतार्थदीपिका
1. आदिपर्व महाभारत के आदिपर्व का नामकरण इसके विषय-वस्तु के आरम्भ करने के आधार पर ही किया गया है। इसमें कुल 29 उपपर्व और 233 अध्याय है जिनमें च्यवन के जन्म की कथा, पुलोमा दानव के भस्म होने की कथा, जनमेजय के नागयज्ञ की कथा. नागों के पशों की कथा समुद्रमन्थन की कथा, शकुन्तला दुष्यन्त की प्रेमकथा पुरुरवा और नहुष आदि के चरित्र की कथा, कौरव पाण्डवा की उत्पत्ति की कथा द्रुपद की कथा, द्रौपदी स्वयंवर की कथा, सुभद्रा के हरण की कथा तथा खाण्डवदहन की कथा आदि प्रसंगों को समाहित किया गया है।
2. सभापर्व महाभारत के दूसरे पर्व का नाम सभापर्व है जिसमें 10 उपपर्व और 81 अध्याय हैं। इन अध्यायों में युधिष्ठिर के लिए सभाभवन के निर्माण की कथा, लोकपाला की विभिन्न सभाओं की कथा, युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के संकल्प की कथा, शिसुपालवध,राजसूय यज्ञ के दिग्विजय की कथा, युधिष्ठिर की द्यूतक्रीडा में हार और वनगमन आदि प्रसंगों का वर्णन किया गया है।
3. वनपर्व महाभारत के तीसरे पर्व का नाम वनपर्व है जिसमें 22 उपपर्व और 315 अध्याय है। इसमें पाण्डवों के वनवास तथा द्वैतवन में निवास करने की कथा,इन्द्रनील पर्वत पर अर्जुन की तपस्या तथा शिव और अर्जुन के युद्ध की कथा, नहुष की सर्पयोनि से मुक्ति की कथा, गन्धर्वो द्वारा कौरवों को हराने की कथा, पाण्डवों द्वारा गन्धर्वो को हराना और कौरवों को छुडाने की कथा, रामोपाख्यान की कथा, यक्ष युधिष्ठिर संवाद और अज्ञातवास की कथा आदि वर्णित है।
4. विराटपर्व चौथे पर्व का नाम विराट पर्व है जिसमें 5 उपपर्व और 72 अध्याय हैं। इसमें पाण्डवों का विराटनगर में अज्ञातवास गुप्तमन्त्रणा, कौरवों द्वारा विराट की गायों को ले जाना, अर्जुन के द्वारा कौरवों से युद्ध कौरवों की पराजय, राजा विराट के द्वारा पाण्डवों को पहचानना, अर्जुन के द्वारा उत्तरा को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करने की कथा का वर्णन किया गया है।
5. उद्योगपर्व पाँचवा पर्व उद्योगपर्व है जिसमें 10 उपपर्व और 196 अध्याय है। इसमें राजा विराट की सभा में कृष्ण आदि के द्वारा पाण्डयों को युद्ध के लिए सज्जित करने की कथा, कौरवों के द्वारा युद्ध की तैयारियाँ, कृष्ण द्वारा दुर्योधन को समझाना दुर्योधन द्वारा कृष्ण को बन्दी बनाये जाने का असफल प्रयास, कौरवों और पाण्डवों द्वारा सैन्य शिविरों का निर्माण, भीष्म और परशुराम के युद्ध की कथायें वर्णित हैं।
6. भीष्मपर्व छठौं पर्व भीष्मपर्व है जिसमें 4 उपपर्व और 122 अध्याय हैं। इनमें कौरवों और पाण्डवों द्वारा युद्ध सम्बन्धी नियमों के निर्णय करने की कथा, जम्बूद्वीप का वर्णन, अर्जुन विषाद, कृष्ण के द्वारा गीता का उपदेश भीष्म के घायल होने की कथा आदि का वर्णन है।
7. द्रोणपर्व सातवाँ पर्व द्रोणपर्व है। इसमें 8 उपपर्व और 202 अध्याय हैं। इसमें द्रोणाचार्य को सेनापति नियुक्त होने, द्रोणाचार्य द्वारा चक्रव्यूह निर्माण, अभिमन्यु के शौर्य और वध की कथा, अर्जुन द्वारा जयद्रथ वध की प्रतिज्ञा और वध की कथा, कर्ण द्वारा घटोत्कच का वध, द्रोणाचार्य के वध की कथा आदि को समाहित किया गया है।
8. कर्णपर्व आवया पर्व कर्णपर्व है जिसमें 96 अध्याय हैं। इसमें कर्ण को सेनापति पद पर नियुक्त करने, अर्जुन और कर्ण का युद्ध, अर्जुन द्वारा कर्ण का यध, दुर्योधन का शोक शल्य द्वारा दुर्योधन को सान्त्वना देने की कथा आदि वर्णित है।
9. शल्यपर्व महाभारत का नौवाँ पर्व शल्यपर्व है जिसमें 2 उपपर्व और 65 अध्याय है। कृपाचार्य द्वारा सन्धि के लिए दुर्योधन को समझाने की कथा शल्य की सेनापति पद पर नियुक्ति युद्धिष्ठिर द्वारा शल्य व दुर्योधन का भीम से युद्ध, सेनापति पद पर अश्वत्थामा के अभिषेक की कथा का वर्णन किया गया है।
10. सौप्तिकपर्व दसवाँ पर्व सौप्तिकपर्व है जो 1 उपपर्व और 18 अध्यायों में विभक्त है। इसमें अश्वत्थामा के द्वारा सोते हुए पाचालों के वध की कथा. अश्वत्थामा एवं अर्जुन द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग, व्यास की आज्ञा से अर्जुन द्वारा ब्रह्मास्त्र का शमन और अश्वत्थामा की मणि ग्रहणकर वन में निवास करने की कथा आदि को सम्मिलित किया गया है।
11. स्त्रीपर्व ग्यारहवाँ पर्व स्त्रीपर्व है जो 3 उपपयों और 27 अध्यायों में निबद्ध है। इसमें दुर्योधन की मृत्यु पर धृतराष्ट्र का विलाप, गान्धारी आदि स्त्रियों का विलाप, गान्धारी के द्वारा क्रोधातुर होकर शाप देने की कथा. कुन्ती द्वारा कर्ण के जन्म के रहस्य की कथा, युधिष्ठिर के द्वारा कर्ण के लिए शोकाकुल होने की कथा और युधिष्ठिर के द्वारा स्त्रियों को मन में रहस्य छिपाने पर शाप देने की कथा आदि का वर्णन है।
12. शान्तिपर्व - बारहवाँ पर्व शान्तिपर्व है जिसमें 3 उपपर्व और 365 अध्याय हैं। इसमें युद्ध की समाप्ति, युधिष्ठिर के राज्याभिषेक की कथा, पितामह भीष्म के द्वारा कृष्ण की स्तुति, युधिष्ठिर और भीष्म का संवाद, भीष्म द्वारा युधिष्ठिर को विविध धर्मों का उपदेश की कथा समाहित की गई है।
13. अनुशासनपर्व - तेरहवाँ पर्व अनुशासनपर्व है जो 2 उपपर्व और 168 अध्यायों में विभक्त है। इसमें भीष्म और युधिष्ठिर संवाद, भीष्म का प्राणत्याग, भीष्म का अन्तिम संस्कार, गंगा का शोकाकुल होना, कृष्ण द्वारा गंगा को सान्त्वना प्रदान करना आदि प्रसंगों का वर्णन किया गया है।
14. आश्वमेधिकपर्व - चौदहवाँ पर्व आश्वमेधिक पर्व है जो 3 उपपर्व और 113 अध्यायों ने निबद्ध है। इसमें युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ की तैयारी, अर्जुन और कृष्ण-संवाद, ब्राह्मणगीता का उपदेश, पाण्डवों की दिग्विजय यात्रा, पाण्डवों द्वारा अन्य राजाओं से धनाहरण, अश्वमेध यज्ञ की पूर्णता, कृष्ण के द्वारा युधिष्ठिर को वैष्णव धर्म के उपदेश की कथायें वर्णित हैं ।
15. आश्रमवासिकपर्व - पन्द्रहवाँ पर्व आश्रमवासिकपर्व है जिसमें 3 उपपर्व और 39 अध्याय हैं। इसमें पाण्डवों द्वारा धृतराष्ट्र और गान्धारी की सेवा की कथा, व्यास आज्ञा से धृतराष्ट्र और गान्धारी के वनगमन की कथा, नारद के मुख से निकलने वाली अनल से धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती के भस्म होने की कथा, युधिष्ठिर के विलाप की कथा, युधिष्ठिर द्वारा धृतराष्ट्र के श्राद्धकर्म करने की कथा आदि का वर्णन है।
16. मौसलपर्व महाभारत का सोलहवाँ पर्व मौसल पर्व है जो 8 अध्यायों में विभक्त है। इसमें साम्ब के उदर से मूसल की उत्पत्ति की कथा, मूसल को चूर्ण बनाकर समुद्र तट पर फेंकने, मूसल के चूर्ण से सरों की उत्पत्ति, सरों से आपस में युद्ध, यदुवंशियों के विनाश की कथा, कृष्ण, बलराम का स्वर्ग - गमन, समुद्र में द्वारकापुरी के डूबने की कथा वर्णित है।
17. महाप्रस्थानिकपर्व - सतरहवाँ पर्व महाप्रस्थानिक पर्व है जिसमें 3 अध्याय हैं। इसमें द्रौपदी का युधिष्ठिर आदि के साथ महाप्रस्थान की कथा और इन्द्र एवं धर्म से युधिष्ठिर के संवाद की कथा आदि का बहुत ही मनोहारिणी चित्रण किया गया है।
18. स्वर्गारोहणपर्व - महाभारत का अट्ठारहवाँ पर्व स्वर्गारोहणपर्व है जो 5 अध्यायों में विभक्त है। इसमें नारद युधिष्ठिर संवाद, नर्क में युधिष्ठिर को छोड़कर अन्य पाण्डवों के कष्ट की कथा इन्द्र और धर्म के द्वारा युधिष्ठिर को सान्त्वना देना, युधिष्ठिर का शरीर त्यागना, स्वर्गगमन, युधिष्ठिर का दिव्यलोक में कृष्ण आदि से मिलन, अन्त में महाभारत का उपसंहार तथा खिल भाग में हरिवंशपुराण की कथा आदि का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है।
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